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Showing posts from September, 2022

नवरात्र जागरण

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  नवरात्रि पर्व पर विशेष नवरात्र जागरण      @ मानव सर्वशक्तिमान माँ दुर्गा सम्पूर्ण जगत की रचनाकार  और सर्वोच्च सत्ता हैं।  प्रकृति के अप्रतिम सौंदर्य  और सम्पूर्ण जगत की  मानस चेतना के रूप में  सर्वत्र माँ पराम्बा ही  अभिव्यक्त हैं। नवरात्र का जागरण माँ का प्रकृति स्वरूप  और प्रकृति का माँ स्वरूप  लोकों में जागृत है।  मृत्युलोक में  भगवती का अवतरण  दुखों,  संतापों, रोगों,  भय  और अत्याचारों को  मिटाने के लिए  बार-बार होता है।  देवी माता के  सर्वसुलभ प्रवास का अवसर  नवरात्र में आता है,  जब सभी भक्तों के लिए  माँ जगदंबा  अपने स्वरूप में  विद्यमान रहती हैं।  जगतजननी माँ अपनी समस्त संतानों की  कामना पूर्ति के लिए  वर्ष में दो बार  उपस्थित रहकर  वात्सल्य का वर्षण करती हैं।  यह रात्रि जागरण भर नहीं,  जन जागरण का भी पर्व है।  परमशक्ति की स्तुति का आयोजन  तभी सार्थक सिद्ध हो सकेगा।   ~ मनोज श्रीवास्तव

शिव-शक्ति

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  नवरात्रि पर्व पर विशेष शिव-शक्ति       @ मानव शक्ति रूप देवी का  गौरवपूर्ण पक्ष यही है "वह एक ही शिव के प्रति निष्ठ हैं", और शक्तिमान शिव ही  उनके परम आराध्य हैं। शक्ति जब शिव केंद्रित होती है  तभी स्वयं भी  पूर्णांक को प्राप्त होती है  और साधक को भी  व्यापक शिव में ही  केंद्रित करती है। शक्ति को पाने का मार्ग  शिव है  और शिव को प्राप्त करने का मार्ग  शक्ति है  वही हमारी संस्कृति का  पूरक और विराट स्वरूप है। नवदुर्गाओं में  कोई विरोधी गुण ऐसा नहीं, जिसको देवी ने स्वीकारा न हो।  विरोधी गुणों का  संसार के कल्याण के लिए  उपयोग करना ही  दुर्गा की पूर्णता है।  वही उसका सिद्धिदात्री स्वरूप है। वे समष्टि अहं का आश्रय हैं  "कि मैं शिव की हूँ और शिव मेरे हैं",  शिव के अतिरिक्त  न मेरा कोई भाव है,  न कोई भव्यता ।    नारी को पुरुषार्थ से प्राप्त करना  आसुरी वृत्ति है और कृपा से प्राप्त करना  शिव दृष्टि है।  नारी का स्वातंत्र्य  तभी सिद्ध होगा,  जब वह शिवार्पित होगी।  नारी शक्ति  किसी अनुग्रह की मोहताज नहीं।  नारी शक्ति  स्वयं सिद्ध है,  क्योंकि वह शिव-शक्ति है।  शिव स्वयं सि

गीतातीत जगदम्बा

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  नवरात्रि पर्व पर विशेष गीतातीत जगदम्बा        @ मानव एक सर्वोच्च शक्ति  जो सर्वत्र व्याप्त है, जगदम्बा हैं।  जगदम्बा विश्वमोहिनी हैं जो गर्भ में अनंत रहस्य लिए पृथ्वी बन कर घूम रही हैं,            ( विश्वमित्र )  असीम करुणा पूर्ण हैं। जगदम्बा प्राणियों की चेतना हैं, माता-पिता की छत्रछाया हैं,  नारी की लज्जा हैं, विष्णु की महालक्ष्मी हैं, दार्शनिकों की मेधा हैं, राम की शक्ति हैं,  कृष्ण की मुरली हैं,  बुद्ध की करुणा हैं, महावीर की क्षमा हैं। जगदम्बा   विश्वेश्वरी हैं; जगद्धात्री हैं ; देवताओं की स्फूर्ति हैं; देवलोक का  समग्र अनुशासन  सुनिश्चित करती हैं; जीवन समर में विजयोल्लास-संचार करने वाली  आनंद की राजेश्वरी हैं; अकुंठित विचारणा हैं जो अज्ञान और जड़ता के महादैत्य का विध्वंस करने  मनीषियों के अंतः करण से प्रस्फुटित होती हैं। जगदम्बा  सत्य के सिंह पर विराजित  त्रिलोक सुंदरी हैं; वह आत्म शक्ति हैं जो अपनी योगमाया से  हमें नियंत्रित करती हैं; उनका एक ही वैश्व नियम है- शाश्वत प्रेम और शाश्वत सौंदर्य; वही उनकी क्षुधा है, यही तृष्णा है, यही वृत्ति है, और यही तुष्टि है। जगदम्बा हमारे भीतर

श्रद्धया इदं श्राद्धम्

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  पितृपक्ष पर विशेष श्रद्धया इदं श्राद्धम्        @ मानव पितृपक्ष अवसर है, उत्सव का! उत्सव तभी सुशोभित होगा, जब पितरों का आशीष मिलेगा।  जब सबकी भागीदारी होगी। यह भावना पूर्वजों के प्रति  स्वाभाविक श्रद्धा है, सम्मान है, सहज उदारता है, जो लोक का प्रबल गुण है। मानव जाति का जीवनचक्र विगत दिवंगत को प्रणाम  और आगत का सम्मान है। भारतीय जीवन दर्शन  प्रतिपादित करता है देह यात्रा पूर्ण होने पर भी जीवन यात्रा चलती रहती है। क्योंकि आत्मा अजर-अमर है।  जीवन चक्र पूर्ण करके ही  आत्मा ब्रह्माण्ड में  विलीन हो जाती है। पूर्वज इस लोक से  विदा होने के बाद भी  सूक्ष्म रूप में रहते हुए हमारे सुख-दुख  प्रभावित करते हैं। भौतिक शरीर छोड़ने पर आत्मा द्वारा धारण  सूक्ष्म शरीर की प्रिय के प्रति  अतिरेक की अवस्था  "प्रेत" है। (गरुड़ पुराण) सूक्ष्म शरीर वाली आत्मा में मोह, माया,  भूख और प्यास का  अतिरेक होता है।   पिण्ड दान के उपरांत प्रेत पितरों में  सम्मिलित हो जाते हैं। यह पितरों में मिलाना है। निर्बल को  क्षमता भर दान से  पितर संतुष्ट होते हैं कि उनकी संतान में  करुणा है दया है,  लोक कल्याण की चिन्ता

श्राद्ध

  पितृपक्ष पर विशेष श्राद्ध       @मानव हमारे चरित्र से लेकर सर्वांगीण विकास तक के रचनाकार पूर्वज हैं।  परिजनों के परितः  विचरण करती आत्मा  धर्मपूर्वक मोक्ष हेतु  भावी पीढियों में भगीरथ को खोजती है जो उस जीवात्मा का  परमात्मा में विलय कराकर  मोक्ष प्रदान करे।  अपना उद्धार चाहने से पहले पूर्वजों का उद्धार  हमारा दायित्व है। सृष्टि का क्रमिक विकास, मानवीय संस्कारों का  पीढ़ी दर पीढ़ी संरक्षण,  संसार का नियम है।  भूत, वर्तमान व भविष्य  तीनों कालों का  सही निर्वहन धर्म कर्म की ज्योति  निरंतर प्रकाशित करके ही संभव है । प्रत्येक प्राणी पूर्वजों के विकसित रूप में मानवीय मूल्यों के संरक्षण हेतु सर्वथा समर्थ है ; यह दायित्व स्वीकारना  सभी का ध्येय है यह मार्ग मानवता का  सहज क्रम है। ~ मनोज श्रीवास्तव

त्वमेव माता

  मातृनवमी पर विशेष त्वमेव माता       @मानव मातृ-नवमी में  नौ माह गर्भ में जीवन देने के बदले  दिवंगत माँ के प्रति आभार और श्रद्धा का  भाव समाहित है। नवरात्र के नौ दिन  इन्हीं अमृत दिनों का  पुण्य-स्मरण कराते हैं। देवगण भी  इस महत्ता को स्वीकारकर प्रार्थना,मंत्र व श्लोक में  मातृशक्ति के पीछे  अपना स्थान बनाते हैं।  माता कुमाता न भवति इति सिद्धम्! ~ मनोज श्रीवास्तव

भगवन् विश्वकर्मा

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  भगवान विश्वकर्मा जयन्ती पर विशेष भगवन् विश्वकर्मा        @मानव  तकनीकी कौशल के सर्वमान्य वैदिक देवता; देव शिल्पी; सृष्टि रचयिता  प्रजापति ब्रह्मा-वंशज; ऋग्वेद की एकादश ऋचाओं में गुणानवादित; जगन्नाथ मंदिर शिल्पकार; शिल्पावतार रूप में  श्रीहरिविष्णु अभिनंदित;       ( विष्णु पुराण ) देव यानों के स्रष्टा,     ( अथर्वपुराण ) पुष्पक विमान शिल्पी; स्वर्णमयी लंका, द्वारका, व इन्द्रप्रस्थ के निर्माता;  सुर-असुर,  यक्ष - गंधर्व, मानव - देवगण,  सभी द्वारा पूजित-वंदित, शिल्प शास्त्र प्रणेता आचार्य श्री विश्वकर्मणे नमः! श्री विश्वात्मने नमः!! ~ मनोज श्रीवास्तव

राजभाषा हिन्दी

  हिन्दी दिवस पर विशेष राजभाषा हिन्दी       @मानव राष्ट्र की  सामुदायिक वाक् सत्ता  एवं राष्ट्र देवता की  मूल अभिव्यक्ति है हिन्दी! भारत की  मातृत्व-संवेदनाओं  और सामाजिक सरोकारों का  आधार है हिन्दी। सनातन वैखरी  एवं भारतीय अस्मिता की  साकारता है हिन्दी। जहाँ हमारी आद्य-संस्कृति  सभ्यता  और संस्कारों के स्वर  समाहित हैं  वह भाषा है हिन्दी। राष्ट्र को एकता  व अखंडता के सूत्र में  बाँधने वाली,  राष्ट्र धरोहर है राजभाषा हिंदी।  गौरवशाली इतिहास,  संस्कृति  एवं परंपराओं की  वाहक है हिन्दी।  सिर्फ़ भाषा नही,  भावों की अभिव्यक्ति, व अखण्ड भारत की  कल्पना को साकार करती राष्ट्र की आत्मा है मातृ भाषा हिंदी! ~मनोज श्रीवास्तव

क्रोध व क्षमा

  महापर्व पर्युषण(क्षमावाणी पर्व) पर विशेष क्रोध व क्षमा         @मनोज क्रोध त्यागकर  स्व-स्वरूप में स्थिर होना  क्षमा है।  क्षमा  क्रोध दूर करने की  सफलतम युक्ति है। क्षमा से अहिंसा का विकास होता है। क्षमा हमें सहनशीलता से  रहने की प्रेरणा देती है।  क्षमा से हम स्वयं को  चिंता  व तनावमुक्त करते हैं। क्षमा का अर्थ क्रोध को दबाकर माफ करना नहीं अपितु वह अवस्था है जहाँ क्रोध ही न आए। क्रोध उत्पन्न न होने देना,  यदि हो भी जाए, विवेक व नम्रता से  विफल करना  आवश्यक तप है।  अपनी भूलों के लिए क्षमा माँगना,  दूसरों की त्रुटि हेतु  क्षमा कर देना, उदारता  व शांति प्रियता का  परिचायक है। क्षमा हमारे मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभावी है।  हिंसा की आग में झुलसते मानव को क्षमा की शीतलता ही राहत दे सकती है। ~ मनोज श्रीवास्तव

लघुकथा :संवेदनशीलता

  लघु कथा, संवेदनशीलता        @मानव मई माह का अंतिम सप्ताह, प्रचंड गर्मी शाम होते और विकराल।पेड़ों का एक पत्ता भी नहीं हिल रहा।बच्चों की छुट्टी के साथ जेठ की लगन का जोर।सारे यातायात के साधनों पर भीड़ का दबाव। आजमगढ़ से दिल्ली को लगभग सोलह सौ किमी अप डाउन करने वाली परिवहन निगम की एक्सप्रेस सेवा की यह बस जैसे ही सुलतानपुर डिपो पर रुकी चढ़ने और उतरने वाली सवारियों में धक्का मुक्की शुरू हो गई। कंडक्टर बार-बार चेतावनी दे रहा था-"एक्सप्रेस बस है, चालीस किलोमीटर से पहले कोई स्टापेज नहीं है। बीच की सवारी न चढ़े।" बीच वाली कुछ ग्रामीण सवारियाँ व्यवस्था को कोसते हुए उतर गई। फिर भी बस ठसा-ठस थी। बस चली जरा हवा लगी। कंडक्टर ने टिकट बनाना शुरू किया। उसने एक दो टिकट ही बनाए थे कि एक हृष्ट-पुष्ट युवक ने बीच के टिकट की माँग कर दी। कंडक्टर भड़क गया। साहब मैने पहले ही बता दिया था कि कादीपुर से पहले का कोई टिकट नहीं बनेगा। बस अभी डिपो से बाहर ही आई है आप दूसरी गाड़ी पकड़ लीजिए।"  भीषण गर्मी में पसीने से चुहचुहाता जवान दुगने आवेग में भड़क गया "मैं बस से नहीं उतरुँगा और तुम्हे मेरा बरौंस

अहंकार शामक देव

  वामन भगवान जयंती  भाद्रपद शुक्लपक्ष द्वादशी   अहंकार शामक देव     @मानव भगवान विष्णु के  पञ्चम अवतार  भगवान वामन, जिनका तीन पग  त्रिगुणात्मक जीवन का प्रतीक है, राजा बलि की नकारात्मकता के  तामसिक गुणों को पाताल ले जाने के योजनाकार हैं। अहंकार ग्रस्त  का  सदाचारण  क्षीण हो जाता है, बड़ा दिखने पर भी  लघुता घरकर जाती है,  जबकि अहंकार शून्य की क्षमता और संभावनाएं   व्यापक और अनंत होती हैं। वामनावतार  इसी सिद्धान्त का  विस्तार है,  अहंकार का शमन कर  वास्तविक विराटता का उद्घाटक है। वामन भगवान का  पावन चरण  लघु से विराट होने की  पावन यात्रा है। ~ मनोज श्रीवास्तव

शिक्षक

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  शिक्षक      @मानव गुरु या शिक्षक  प्रकाश का स्रोत,  जो ज्ञान-दीप्ति से  अज्ञान - आवरण को  दूर कर जीवन को सही मार्ग पर ले चलता है। उसका स्थान  सर्वोपरि है।  वह साक्षात  परब्रह्म है। ज्ञान के प्रति  निष्ठावान श्रेष्ठ  मनुष्य-निर्माण  उसका दायित्व है। सम-विषम परिस्थितियाँ  जीवन का अंग हैं। बहुमुखी ज्ञान, लोकाचार  और अंतर्मन-शक्ति का  ज्ञान कराना, आदर्श जीवन के मानदण्डों से अवगत कराना,  विषम परिस्थिति के विचलन को रोकना योग्य शिक्षक का दायित्व है । आदर्श शिक्षक क्षण भर के लिए भी  शिष्य सान्निध्य में आए तो अपने सत् आचरण का  प्रत्यारोपण शिष्य में कर देता है। ~ मनोज श्रीवास्तव

श्री राधा

  श्री राधाष्टमी पर विशेष श्री राधा        @मानव शाश्वत,अलौकिक  प्रेम की प्रतिमूर्ति भक्ति  और करुणा की देवी,  त्याग व समर्पण की  पराकाष्ठा का अद्‌भुत प्रमाण; श्रीकृष्ण के  हर सृजनात्मक कार्य की पृष्ठभूमि में  जिनकी छाया है, श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व  जिनके बिना अधूरा है, जो योगेश्वर की  चेतना के शुद्ध आनंद का  प्रतिनिधित्व करने वाली  अप्रतिम शक्ति हैं, वे कृष्ण की शक्ति  राधारानी हैं।  राधा केवल  भौतिक रूप में अस्तित्वमय नहीं अपितु मूल प्रकृति रूप में  वर्णित हैं, वे नारायण से अविभाज्य हैं, यही मूल-बीज  सभी भौतिक रूपों के विकास का उद्गम केन्द्र है। ( ब्रह्मवैवर्त पुराण) अलौकिक दिव्यस्वरूप  ब्रह्मादि देवों द्वारा वन्दित जिनकी कीर्ति के  कीर्तन से त्रैलोक पवित्र होते हैं  ऐसी राधारानी  परमपुरुष की  आत्मरुपा हैं। ( स्कंध पुराण ) तभी तो नारायण राधारमण हैं। राधा  व्यक्तिगत आत्मा की  प्रतीक हैं  और श्रीकृष्ण  सार्वभौमिक आत्मा के   प्रतिरूप ! कृष्ण बिना राधा  व राधा बिना कृष्ण की कल्पना असंभव है ! ~ मनोज श्रीवास्तव

गणपति

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  गणेशोत्सव पर विशेष गणपति     @ मानव गणपति  केवल विघ्नहर्ता नहीं,  सुमति दाता भी हैं।  जिसके विघ्न हरते हैं,  उसे सुमति से  संयुक्त भी करते हैं।  जहाँ सुमति है,  वहां विघ्न अनावश्यक हैं।  गणपति आते हैं  सुमति साथ आती है।   भगवती पार्वती  महाबुद्धि हैं  तो उनके पुत्र  बुद्धि प्रदाता होंगे। इसलिए बाल्मीकि के  महाबुद्धि पुत्राय हैं। श्रीगणेश  प्रत्येक शुभ के  मूल में हैं।  वे साकार  और निराकार  दोनों मार्ग का  पथ प्रशस्त करते हैं।  वे योग से लेकर तंत्र साधना में अग्रगण्य हैं।  वे मूर्तिमान भी  और तत्वतः भी विद्यमान हैं। इसलिए पंथ चाहे कोई हो,  पद्धति चाहे कुछ भी हो,  प्रथम पूज्य तो  श्री गणेश ही होते हैं। वे मोदक के वैशिष्ट्य से  दूर्वा की साधारणता को  समान भाव से  प्रियता प्रदान करते हैं,  तभी तो वे गणनायक हैं, गण ईश हैं,  गणपति हैं और स्वयं गण भी हैं।  वे सर्व में स्थित होकर  सर्व नायक बनते हैं,  चाहे शैव हों या शाक्त,  वैष्णव हों या सौर्य,  सगुणोपासक हों  या निर्गुण उपासक,  जो सर्व को प्रिय है वे ही श्रीगणेश हैं ।  यह सर्व स्वीकार्यता ही  गणनायक होने के मूल में है। ~ मनोज श्रीवास्तव