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Showing posts from October, 2022

सृष्टि की साधना का पर्व

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  छठ पर्व पर विशेष   सृष्टि की साधना का पर्व      @ मानव जगत की प्राण-शक्ति है  "सूर्य" इस शक्ति के  अस्तित्व को समर्पित  भगवान भाष्कर की  उपासना व उपवास का  महा अनुष्ठान है छठ पर्व। वस्तुत: यह सृष्टि की  साधना का पर्व है। प्रकृति के समन्वय से आहत व आक्रांत मन को  शीतल करने की अद्भुत शक्ति है  इस उत्सव में। यह हमें शारीरिक,  मानसिक,  आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदाता है।  यह पर्व  मनुष्य और प्रकृति के बीच आस्था व प्रेम का  अनूठा संगम भी है।  इस महापर्व में   जीवनार्थ आवश्यक  ऊर्जा संयोजित करने का  संदेश छिपा है।  यह पर्व एक तप है  जो मनुष्य के  अंतस के अंधकार - काम, क्रोध, मद, लोभ, ईर्ष्या हिंसा का अवसान करता है;  जीवन में सुख,  समृद्धि, सौभाग्य का  विहान लाता है। शरद ऋतु के आगमन से  सात्विकता से भरी  भोर और साँझ  घर आँगन से उठते  लोक पर्व के गीतों की  धुन से विभोर  सबका मन इस पर्व में  लोकशक्ति का संचारक है। यह प्रकृति से तारतम्यता का  अप्रतिम संदेश है, छठ व्रत पर्व के  तप की शक्ति  हर मानस को  जोड़ देती है  यह आस्था  कभी खत्म ना होने वाली है   ~मनोज श्रीवास्तव

राजा राम

 राजा राम      @मानव राजा राम सुख स्वरूप हैं और सुख धाम भी वही हैं श्री राम के लिए  स्नेह,  दया,  सत्य, पवित्रता,  मर्यादा,  नैतिकता,  करुणा,  धर्म,  साहस आदि सद्गुण  युद्ध के आयुध हैं। लोक वेद द्वारा विहित नीति पर चलना,  धर्मशील होना, प्रजापालक होना सज्जन एवं उदार होना, स्वभाव का दृढ़ होना दान शील होना  उनका गुण है, जो आदर्श राजा का  प्रतिबिम्ब व मार्गदर्शक है।    ~मनोज श्रीवास्तव

रामराज्य

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  रामराज्य       @ मानव ऐसी समग्र राज्य व्यवस्था  जिसमें सामाजिक जीवन  धर्मावलम्बित है  रामराज्य है। यह मानव सभ्यता में  विशिष्ट राष्ट्र की  ऐसी कल्पना है, जिसमें सभी नागरिक  शिक्षित हैं, बोध सम्पन्न हैं, सभी प्रकार की  शुभता से युक्त हैं, दैहिक दैविक और भौतिक दुखों से मुक्त   परस्पर प्रेम करते हुए  विधि सम्मत मर्यादा में रहकर  धर्म-पालन करते हैं,  राज्य व समाज के सभी आधारभूत घटकों को  श्रद्धा से ओत-प्रोत करते हुए  हर एक की स्वतंत्रता  सुनिश्चित करते हैं,  सर्वत्र भद्र देखते हैं। यह सुशासन की ऐसी कल्पना है, जहाँ सबको योग्य बनने  और योग्यतानुसार  हर लब्धि का  अधिकार देती है,  सर्वत्र पारदर्शिता है; समाज के अंतिम व्यक्ति के  उत्थान की चिंता प्रधान है। रामराज्य सच्चा लोकतंत्र है जो राजा व निर्धन  दोनों के अधिकार  सुनिश्चित करता है  नैतिक अधिकार के आधार पर  यहाँ लोगों की संप्रभुता है । जिसका मूलाधार लोकहित सँग मानवतावाद है। रामराज्य में मनुष्य  और प्रकृति  निजधर्म पालक हैं,  समग्र कल्याण के लिए उदारचेता होकर  त्याग करते हैं, संग्रह प्रवृत्ति से परे हैं, धर्म व मर्यादा की स्थापना उनका उद्दे

राम राज्याभिषेक महोत्सव

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  राम राज्याभिषेक महोत्सव       @मानव पुरुषोत्तम श्रीराम के  अयोध्या आगमन का  उल्लास पर्व है दीपावली। तपस्वी श्री राम के  राज्याभिषेक से  स्थापित शासन सर्वकालिक आदर्श है  क्योंकि श्री राम  तपस्या और राजधर्म के  शांत, पूर्ण और दिव्य अद्वितीय सेतु हैं। रामराज में भोग का अर्जन  तप से होता है और विसर्जन  प्रजा की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए होता है। जब जीवन में श्रीराम और रामत्व आएगा तब पहले तपस्या आएगी, फिर रामराज्य बनेगा;  जिसमें सभी सुखी होंगे  आनंदित होंगे!  ~ मनोज श्रीवास्तव

सन्देश दीपावली का

  सन्देश दीपावली का        @ मानव यदि चेतना के आंगन पर  जमे कर्म के कचरे को  साफ किया जाए,  उसे संयम से  सजाया-संवारा जाए, उसमें आत्मा रूपी दीपक की  अखंड ज्योति को  प्रज्वलित किया जाए  तो मनुष्य शाश्वत सुख,  शांति एवं आनंद को  प्राप्त कर सकता है। जीवन का वास्तविक प्रकाश मनुष्य में व्याप्त  उसके आत्मिक गुणों के  माध्यम से ही  प्रकट हो सकता है।   जीवन की सार्थकता  और उसके उजालों का मूलाधार  व्यक्ति के वे गुण हैं  जो उसे मानवीय बनाते हैं,  जिन्हें संवेदना  और करुणा के रूप में,  दया,  सेवा-भावना  और परोपकार के रूप में  हम देखते हैं।  इन्हीं गुणों के आधार पर  मनुष्य अपने जीवन को  सार्थक बनाता है।  इन गुणों की उपस्थिति से  गरिमा चिरंजीवी रहती है।   जिस तरह दीप से दीप जलता है,  वैसे ही प्रेम देने से  प्रेम बढ़ता है यही वास्तविक प्रकाश का  निमित्त बनता है। यही दीपोत्सव का निहितार्थ है।    ~ मनोज श्रीवास्तव

दीपोत्सव

  दीपोत्सव        @ मानव उत्सवधर्मी भारतीय समाज में  प्रकृति की लय के साथ अपनी लय मिलाते हुए जीवन में जो पर्व  सुख-समृद्धि उत्साह और गति के  उत्सुक स्वागत का अवसर है  वह दीपावली है। इस उत्सव का आकर्षण है  शक्ति केन्द्र  प्रकाश की ऊर्जा से  स्वयं को पुष्ट  एवं संवर्धित करना। वस्तुत: यह प्रकृति की  सुषमा का प्रकटन है । समय के साथ  होड़ ले रहे पर्व,  हमारी जिजीविषा के  परिचायक हैं  मन, बुद्धि व विचार में पल रहे अंधेरे का  समाधान हमें करना है। मानव का भौतिक शरीर   अनंत नहीं होता  इसकी उपयोगिता  और सार्थकता,  समुचित सदुपयोग से है। दिन-रात के क्रम के साथ  प्रकाश व अंधकार के अनुक्रम से सन्देश स्पष्ट है "दिन के प्रकाश से मिलता,  आश्रय और संतोष,  नित्य नहीं रहने वाला  सजगता व सतर्कता से  अंधकार से जूझने के लिए  सतत तत्परता जरूरी है।" सृष्टि की दीपावली में विराट प्रकाश का  माध्यम बनना ही मनुष्य होने की  सार्थकता है; यही उत्सवधर्मिता की  अनुपम अभिव्यक्ति है "प्रभु जी तुम दीपक  हम बाती,  जाकी जोत  जरै दिन राती"!   ~ मनोज श्रीवास्तव

श्री हनुमान

पावन श्री हनुमान जन्मोत्सव की हार्दिक बधाई! श्री हनुमान        @मानव जब राजा तपस्वी होता है,  उसे हनुमान जैसे  पूर्णकाम सेवक मिलते हैं  जो स्वामी की लोकमंगल भावना को  साकार रूप देते हैं। हनुमानजी ऐसे तपस्वी हैं  जिन्होंने तपस्वी राजा राम की  तपस्या को  संपूर्णता प्रदान की।        ~मनोज श्रीवास्तव

दाम्पत्य-सूत्र

  दाम्पत्य-सूत्र       @ मानव गृहस्थ जीवन  मानवता के विकास की  उर्वरा शक्ति है,  जो गृहणी के आदर्श मूल्यों पर  आश्रित है। यदि स्त्री का मनोबल जीवन साथी के लिए  परिपूर्ण है पुरुष कभी निराश व पराजित नहीं होगा, जो मानवता का दिग्दर्शक होगा।  नारी की संवेदनशील भावनाएं पुरुष की अग्रसर बनें  तो विजय श्री का वरण  सुनिश्चित है।  स्त्री का समर्पण  पुरुष को कठिनाई से  सुरक्षित निकालता है,  आपसी अटूट विश्वास  जीवन चक्र को तीव्र गति प्रदाता है,  बाधा व समस्या का शामक है।  अर्थशास्त्र,दम्पति के सत्य एवं धर्म संबंधों का  सोद्देश्य विस्तार है।  संसार का विकास  पति-पत्नी के  जीवित मूल संबंध पर  अवलंबित है।  सफलता का  प्राथमिक मापदण्ड  स्त्री की सहभागिता है  जो स्त्री के स्वत्व का  परिणाम है।  (पुरुष के अहम अथवा हठवादिता का नहीं) पति पत्नी संबंध से  सुदृढ नव-संसार  निर्मित होगा, मानवता समृद्ध होगी,  आध्यात्मिक जीवन का  सूत्रपात होगा, सुख-शांति  एवं कल्याण की  कल्पना साकार होगी,  राष्ट्र का निर्माण दाम्पत्ति के  सदाचरण वाले  समुदाय से ही संभव है।   ~ मनोज श्रीवास्तव

करवा चौथ

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  करवा चौथ        @ मानव केवल परंपरा नहीं  वरन् नारी की शक्ति का  उत्सव है करवा चौथ! व्रती स्त्री का तप इतना शक्तिशाली होता है जो पति की आयु की भी रक्षा कर सकती है। संयमित रहकर  नियम-संयम एवं विधि-विधान का पालन  संकल्प शक्ति की  वृद्धि करता है। ससंकल्प निर्जल व्रत के प्रभाव से  की गई इच्छा सदा पूर्ण होती है। निर्जल उपवास की तप ऊर्जा को  अंतस में संचित कर  सोलह श्रृंगार से अलंकृत सुहागिन चन्द्रमा को अर्ध्य देकर  पति की मंगलकामना करती है।  सुहागिन प्रार्थना करती है  माँ पार्वती जैसे एकनिष्ठ सुहाग का वरदान मिले, गणेश व कार्तिकेय सम  विवेकी व अप्रतिम साहसी  संतति प्राप्त हो, माता पार्वती जैसी  शक्ति व साधना मिल सके,  वैवाहिक जीवन में  चन्द्र सी शीतलता बनी रहे।  ~ मनोज श्रीवास्तव

रासरात्रि शरद पूर्णिमा

  शरद पूर्णिमा पर विशेष रासरात्रि शरद पूर्णिमा       @ मानव चन्द्रमा और उसकी उज्जवल चन्द्रिका के माधुर्य व आनन्द की अनुभूति  शरद पूर्णिमा का अवसर है,  यह भक्ति व प्रेम के  रस का समुद्र है, यही जीवात्मा व परमात्मा के  रास-रस का आनंद है। इसी पीयूष वर्षिणी रात्रि को  लोक विमोहिनी वंशी बजाकर  श्रीधाम वृंदावन के वंशीवट क्षेत्र में ब्रज गोपिकाओं के साथ  नटवर कृष्ण की  महारास लीला ने जग को सन्देश सौंपा- श्रीकृष्ण आत्मा हैं,  आत्मा की वृत्ति श्री राधा हैं, आत्माभिमुख वृत्तियाँ गोपियाँ हैं, इन सब का निरंतर आत्मरमण  "महारास" है। रसमयी व सच्चिदानंदमयी  गोपिकाओं का  सब छोडकर  ईश्वर के पास जाना  धर्म,अर्थ और काम का त्याग है। ईश्वर से एकाकार होने का इच्छुक जीव अभिमान त्यागकर परम तत्व कृष्ण से जुड़े  तो जीवन में प्रेम व भक्ति के  चन्द्रमा का उदय निश्चित है। शरद पूनम की रात  चन्द्रमा स्व-पूर्ण कलाओं के साथ पृथ्वी पर शीतलता, पोषक शक्ति एवं शान्तिपूर्ण अमृत वर्षा से जन-जन को आरोग्यता, दीर्घजीवन व अप्रतिम शान्ति प्रदान करता है।   ~ मनोज श्रीवास्तव

विजयादशमी

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  पावन दशहरा पर्व की शुभकामनाएँ विजयादशमी        @ मानव (१) पुरुषोत्तम राम की  अभिमानी रावण पर विजय की कहानी अतीत की अमरकथा ही नहीं असत्य पर सत्य की,  तमस पर प्रकाश की, निशाचरी प्रवृत्ति पर  सतोगुणी आचरण की विजय गाथा भी है, जो वर्तमान के उत्तर लिखती  भविष्य की दिशा सूचक है। विजयादशमी पर्व मानव सभ्यता में  नव श्रद्धा,  नव विश्वास  और नवचेतना का  संचार करता है, जो मानव को मानव बनाता है।  वह मानव, जिसके आदर्श राम हैं। वह राम, रामराज जिनका कर्म प्रतिनिधि है, वह रामराज जिसका आदर्श मानवता है। राम की विजय गाथा मनुष्य के सामर्थ्य को  सर्वोच्च शिखर पर स्थापित करती है, जहाँ मनुष्य रूप में आकर  ईश्वर तमोगुणी विस्तार को   नष्ट कर रामराज स्थापित करता है। (२) माया सृष्टि विस्तारक है, जो सत-रज-तम  गुण-अवगुण साधती है। दर्शन शास्त्र में, सृष्टि महाभ्रम है पर भारतीय संस्कृति में  माया आदिशक्ति है, जिसका अस्तित्व  श्रद्धा भाजन है। तमोगुण से प्रकट 'मायावी' तमोवृत्ति  शुभ के विरुद्ध स्थित व सन्नद्ध है, रावण उसका प्रतिनिधि है  जिसके विनाश हेतु स्वयं ईश्वर अवतरित होते हैं।    ~ मनोज श्रीवास्तव

ऊर्जा स्वरूप दुर्गा

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  नवरात्रि पर्व पर विशेष ऊर्जा स्वरूप दुर्गा        @ मानव ऋषि परंपरा ने  पंचमहाभूत में देव-कल्पना की; पृथ्वी को जननी के अर्थ में अनुभव किया; ऋग्वेद ने भूदेवी की आवधारणा से "माता भूमि: पुत्रो अहम् पृथिव्या:" का उद्घोष किया। पृथ्वी पर जीवन का कारण नारी की शक्ति होने से नवदुर्गा देवी की परिकल्पना  साकार हुई। समस्त देव-शक्तियों का संचयन जगदम्बा है।  यहीं शक्ति के सर्वोत्तम स्वरूप में  नारी की परिकल्पना है। स्त्रीलिंग बोधक 'इ' से परे  'शिव' भी 'शव' है, नारी शक्ति से युत ही  शिव के प्रबल रूप की स्थापना है, माँ अम्बा की प्रतिष्ठा है। देवी दुर्गा  में करुणा व पोषण विषयक मातृत्व-भाव का चरम है, तो विनाश की सहज शक्ति भी। ऊर्जा के ऊर्ध्व रूप से ऊर्जा की विविध अवधारणा नवदुर्गा के  रूप में  व्याख्यायित होती है। सांस्कृतिक दृष्टि से हम नारी को  विलक्षण शक्ति-पुंज सपन्न मानते रहे, क्योंकि शक्ति स्वयं में रहस्यमयी है। और रात्र भी रहस्य भरी है तन्त्र विज्ञान की चौसठ योगिनियाँ नारी शक्ति के  रहस्यमयता की प्रतिनिधि हैं। ~ मनोज श्रीवास्तव

नवरात्र लक्ष्य

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  नवरात्रि पर्व पर विशेष नवरात्र लक्ष्य        @ मानव जग नियंता महादेव की  आह्लादिनी शक्ति,  सर्वतोभावेन् पूर्ण समर्पण द्वारा  अंतस् की संशुद्धि पाकर  साधक  जिनकी करुणा-कृपा का  अधिकारी बन जाता है, लोक परलोक की  समस्त अनुकूलताओं की  संप्राप्ति ही  पराम्बा की  उपासना का  फलादेश है। विभिन्न साधकों की   विभिन्न मनः स्थितियों  और परिस्थितियों को  पूर्ण करने के लिए  अलग-अलग रूपों में  भिन्न और विरोधी रूप  धारण करके  कार्य सिद्धि में सक्षम  शक्ति की साधना से  कृपा का अर्जन करना ही  नवरात्र का चरम लक्ष्य है।   ~ मनोज श्रीवास्तव

अहिंसा

  अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस पर विशेष अहिंसा       @ मानव मन -वचन -कर्म से किसी जीव को  क्षति न पहुँचाना  अहिंसा है।  अहिंसा जीवन की  साधना है, जिसकी पूर्णता का  साधन प्रेम  है, तभी अहिंसा का प्रतिफलन सदैव प्रेम है। त्याग इसका  आवश्यक घटक है, फलत: अहिंसा के लिए  त्याग अपेक्षित है। अहिंसा ही प्रेम का पर्याय है।  अहिंसा ही  जीवन का आधार है। सारा जगत ब्रह्म है, समस्त जीवों में एक ही परमात्मा का वास है। अतः जीव हिंसा  परमात्मा की हिंसा है। यदि हम जीवन दे नहीं सकते,  हमारा अधिकार  मारने का नहीं है। सब नर करहिं  परस्पर प्रीती  चलहिं स्वधर्म  निरत श्रुत नीति से ही  इसका पालन संभव है। ~ मनोज श्रीवास्तव