श्राद्धकर्म प्रयोजन
श्राद्धकर्म प्रयोजन @मानव यमलोक पृथ्वी लोक से छियासी हजार योजन दूर है जो चंद्रमा का उर्ध्व भाग है, यहीं पर पितृ लोक स्थित है। पितृपक्ष के सोलह दिनों में चंद्रमा का उर्ध्व भाग वर्ष के अन्य महीनों की तुलना में पृथ्वी के अत्यंत निकट आ जाता है अर्थात् इस समय पितृलोक पृथ्वी की कक्षा से निकट होने से पितृगण की ऊर्जा सीधे पृथ्वीवासियों से आकर्षित होती है; इसलिए इसी अवधि में पूर्वजों को स्मरण करना समुचित माना जाता है। (गरुड़ पुराण) मनुष्य की आत्मा सूर्य की ऊर्जा से तथा मन चंद्रमा की ऊर्जा से निर्मित का विस्तृत स्वरूप है, जो सूक्ष्म एवं अविनाशी ऊर्जा है; इस मनस ऊर्जा में मन के साथ तो बुद्धि एवं चित्त की ऊर्जा समाहित रहती है; जब यह ऊर्जा संसार में जन्म लेती है, तो उसके पूर्व कर्म, जो उसकी चित्त रूपी ऊर्जा में संचित रहते हैं, अपने प्रारब्ध को भोगने के लिए मनस ऊर्जा के अंदर उसी प्रकार की प्रवृत्ति को उत्पन्न करते हैं, और उसी प्रकार की प्रवृत्ति वाले योनि में जन्म लेने के लिए प्रेरित करते हैं, और जब उसकी मृत्यु हो जाती है तो वही मनस ऊर्जा अपने पूर्व कर्मों के साथ वर्तमान जीव